भारत का पड़ोसी देश नेपाल एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन इस बार वजह राजनीति या आर्थिक संकट नहीं, बल्कि वहाँ की नई पीढ़ी – Gen Z है। ये वही युवा हैं जो इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के दौर में बड़े हुए हैं। बचपन से ही ऑनलाइन जानकारी, ऐप्स, टेक्नोलॉजी और सोशल प्लेटफॉर्म से जुड़े रहने वाले इन युवाओं के लिए सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि संवाद और आज़ादी का माध्यम है।

नेपाल सरकार द्वारा फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफॉर्म पर बैन लगाने और भ्रष्टाचार व बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को लेकर देशभर में विरोध शुरू हो गया है। राजधानी काठमांडू सहित कई शहरों में हजारों युवा सड़कों पर उतर आए हैं। विरोध इतना तेज़ हुआ कि सरकार को फोन और इंटरनेट सेवाएँ बंद करनी पड़ीं, कर्फ्यू लगाना पड़ा, फिर भी ये युवा अपने हक़ की आवाज़ उठाने से पीछे नहीं हटे।

Gen Z की सबसे बड़ी पहचान यही है कि उन्हें अपनी आज़ादी और अभिव्यक्ति का अधिकार सबसे प्यारा है। सोशल मीडिया पर बैन लगते ही युवाओं ने ऑनलाइन समूह बनाकर दूसरों को जुड़ने का आह्वान किया, और देखते ही देखते प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोग शामिल हो गए। यह आंदोलन सिर्फ नेपाल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरी दुनिया की नज़रें वहाँ टिक गईं।
इस आंदोलन ने साल 2011 में मिस्र में हुए युवा विद्रोह की यादें ताज़ा कर दी हैं। मिस्र में भी युवाओं ने बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। वहाँ भी सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई थी। लोगों को जोड़ने, सरकार के खिलाफ माहौल बनाने और विरोध को फैलाने का सबसे बड़ा हथियार यही प्लेटफॉर्म बने। आज नेपाल का Gen Z आंदोलन भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।

Gen Z की जीवनशैली में रील्स, शॉर्ट वीडियो और डिजिटल कंटेंट का अहम योगदान है। टिकटॉक पर प्रतिबंध लगने के बाद इंस्टाग्राम रील्स ही युवाओं की पसंदीदा जगह बन गई। यही प्लेटफॉर्म उन्हें एक-दूसरे से जोड़ने, अपनी राय साझा करने और बदलाव की दिशा में एकजुट होने का मौका दे रहे हैं।
नेपाल का यह ‘Gen Z रिवॉल्यूशन’ सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि यह नई पीढ़ी की सोच, संघर्ष और डिजिटल युग की ताकत का प्रतीक है। ये युवा यह संदेश दे रहे हैं कि आवाज़ को दबाना आसान नहीं है – चाहे इंटरनेट बंद कर दिया जाए, कर्फ्यू लगा दिया जाए, फिर भी वे पीछे नहीं हटेंगे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार उनकी माँगों को कितना सुनती है और क्या ये आंदोलन आने वाले समय में बदलाव का रास्ता खोलता है।